Wednesday 13 March 2013

सपनों के फ़ाहे


सपनों के फ़ाहे

कल रात नींद मेरी
कुछ जख्मी हो गयी थी
चलूँ, आज रात सपनों के
कुछ फ़ाहे और पैबंद लगा दूँ

3 comments:

  1. अनीता जी, मुझे आपकी यह छोटी-सी कविता बेहद पसन्द है। कई बार पढ़ी है, हर बार नई सी लगती है।

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  2. AAJ HEE AAPKEEH YE PANKTIYAN PADHEE HAIN . KHOOB ! BAHUT
    KHOOB !! BAHUT HEE KHOOB !!!

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