लिखी है गज़ल शबनम-सी
लफ़्ज़ों की करामात है
दबा दिया है दर्द को कैसे-कैसे
ज़ख़्मों की खुराफात है
सरे बाज़ार सर हथेली लिए
आशिकों की पूरी बारात है
जुनून-ए-इश्क में ये दिल धड़के
ख़्वाहिशों की बरसात है
दानिस्ता चली आई हूँ तेरे दर पे
अब तू ही मेरी कायनात है