Sunday 9 March 2014

रफ़फू
दिन की बस्ती के
दोपहर वाले नुक्कड़ से
आज एक शाम खरीद लायी हूँ मैं
स्मृतियों के उलझे धागों से
बीते दिनों को रफ़फू कर लूँगी

बहुत रातों से सोयी नहीं हूँ मैं